नज़र की धूप में आने से पहले By Ghazal << ज़्यादा कुछ नहीं मर जाएँग... हुई हम से ये नादानी तिरी ... >> नज़र की धूप में आने से पहले गुलाबी था वो सँवलाने से पहले सुना है कोई दीवाना यहाँ पर रहा करता था वीराने से पहले मोहब्बत आम सा इक वाक़िआ' था हमारे साथ पेश आने से पहले खिला करते थे ख़्वाबों में किसी के तिरे तकिए पे मुरझाने से पहले Share on: