नज़र की रूह की दिल की सऊबतें भी गईं गया शबाब तो वो सारी उलझनें भी गईं गई जवानी तो आई शुऊ'र की दौलत क़दम क़दम पे ज़माने से रंजिशें भी गईं शब-ए-विसाल का अरमाँ न फ़िक्र-ए-शाम-ए-अलम वो कारोबार-ए-जुनूँ की नवाज़िशें भी गईं सफ़ेद बाल हुए ताँक-झाँक में हाइल कहाँ का शौक़-ए-नज़ारा बसारतें भी गईं जुनून-ए-इश्क़ भी रुख़्सत हुआ शबाब के साथ वो रतजगों की पुरानी रिवायतें भी गईं गुनाह हश्र में ठहरी गुनाह की हसरत गुनाह भी न किए और जन्नतें भी गईं ख़याल-ए-गेसू-ए-जानाँ सफ़ेद रीश में गुम वो चश्म-ओ-लब के तसव्वुर की लज़्ज़तें भी गईं बुतों की चाह ने काफ़िर बना दिया था हमें ख़ुदा का शुक्र है 'फ़रहत' वो आदतें भी गईं