नज़र क्या आए ज़ात-ए-हक़ किसी को ख़याल उस का नहीं मुतलक़ किसी को न था आशिक़ के ख़ूँ में रंग गुलज़ार कोई तो दे गया रौनक़ किसी को मुक़य्यद में मुक़य्यद है वो मुतलक़ न सूझा इतना भी मुतलक़ किसी को न कर इतनी भी नासेह हर्ज़ा-गोई ख़ुश आती कब है ये बक़-बक़ किसी को फ़रेब-ए-मुद्दई खाते हैं कब हम मगर समझा है वो अहमक़ किसी को जिगर है चाक चाक-ए-आस्तीं से दिखाई तू ने क्या मिर्फ़क़ किसी को रियाज़-ए-वस्ल से वक़्त-ए-सक़ीमी न हाथ आई कभी सरमक़ किसी को तसव्वुर में तिरे ऐ शोला-ए-हुस्न नहीं आराम चूँ ज़ीबक़ किसी को भरोसा क्या है दिल का बहर-ए-ग़म में डुबो देवे न ये ज़ोरक़ किसी को निकलने आप से देता नहीं आह तिलिस्म-ए-गुम्बद-ए-अरज़क किसी को दिखा दे चाँदनी में अपना मुखड़ा सनम मिल कर ज़रा अबरक़ किसी को 'वहीद'-ए-दहर है ऐ 'मुसहफ़ी' तू न अपने साथ कर मुल्हक़ किसी को