नज़र न आए हम अहल-ए-नज़र के होते हुए अज़ाब-ए-ख़ाना-ब-दोशी है घर के होते हुए ये कौन मुझ को किनारे पे ला के छोड़ गया भँवर से बच गया कैसे भँवर के होते हुए ये इंतिक़ाम है या एहतिजाज है क्या है ये लोग धूप में क्यूँ हैं शजर के होते हुए तू इस ज़मीन पे दो-गज़ हमें जगह दे दे उधर न जाएँगे हरगिज़ इधर के होते हुए ये बद-नसीबी नहीं है तो और फिर क्या है सफ़र अकेले किया हम-सफ़र के होते हुए