नज़र नज़र से मिलाई क्यों थी नफ़स नफ़स में समाए क्यों थे उन्हें था मंज़ूर मुझ से पर्दा तो सामने मेरे आए क्यों थे दयार-ए-हुस्न-ए-वफ़ा-तलब की तरफ़ क़दम ही उठाए क्यों थे जुनूँ को इल्ज़ाम देने वाले जुनूँ की बातों में आए क्यों थे इसी ख़ता की सज़ा में अब तक निशान-ए-मंज़िल नहीं मिला है रह-ए-मोहब्बत में अव्वल अव्वल मिरे क़दम डगमगाए क्यों थे वो आफ़्ताब-ए-जमाल शायद यहीं कहीं से गुज़र रहा है जहान-ए-दिल के तमाम ज़र्रे अभी अभी जगमगाए क्यों थे नफ़स नफ़स सद-ख़लिश बद-आमाल क़दम क़दम पर हज़ार तूफ़ाँ मैं अब ये समझा कि रोज़-ए-अव्वल वो देख कर मुस्कुराए क्यों थे उन्हें जो अब 'कैफ़' से है शिकवा कि नज़्म-ए-आलम बिगाड़ डाला वो ऐसे दीवाने को भला इस ख़िरद की दुनिया में लाए क्यों थे