नज़र पुकार रही है तुम्ही चले आओ मिरी हयात मिरी ज़िंदगी चले आओ ये सूना सूना सा आँगन पुकारता है तुम्हें बहुत घनेरी है ये तीरगी चले आओ ग़ुरूर-ए-ज़ुल्मत-ए-शब तुम ही तोड़ सकते हो बनूँ चराग़ की तुम रौशनी चले आओ ये होंट सूख न जाएँ तुम्हें सदा दे कर बिछड़ न जाए कहीं हर ख़ुशी चले आओ इन आश्नाओं में ना-आश्ना हैं लोग तमाम कहाँ छुपे हो मिरे अजनबी चले आओ तुम्हारा साथ निभाएगी 'शाहिदा' हर-दम करोगे तुम ही मिरी रहबरी चले आओ