नज़र से जिस की अब मस्तूर हूँ मैं उसी की याद से मा'मूर हूँ मैं चटानों की तरह मद्द-ए-मुक़ाबिल मगर अंदर से चकना-चूर हूँ मैं शब-ए-ज़ुल्मत नहीं हव्वा की बेटी उजाला हूँ सहर का नूर हूँ मैं मोहब्बत का तक़ाज़ा है मुरव्वत समझना ये नहीं मजबूर हूँ मैं वफ़ा का प्यार का पैकर हूँ लेकिन जो हो सय्याद तो ज़ंबूर हूँ मैं हवा ले कर उड़ी है ज़र्द पत्ते चमन में नर्गिस-ए-रंजूर हूँ मैं निशाँ उस की जबीं का कह रहा है तजल्ली से जला हूँ तूर हूँ मैं 'अना' टूटी फ़क़त रुस्वाइयों से ख़ुशामद से तो कोसों दूर हूँ मैं