नाज़िश-ए-गुल हुआ करे कोई दिल से काँटा जुदा करे कोई बहते हैं बात बात पर आँसू ऐसी आँखों को क्या करे कोई जब किसी बात में असर ही नहीं क्या दवा क्या दुआ करे कोई कौन है वो जो दर्द-मंद नहीं किस की किस की दवा करे कोई जब कलेजे में तीर हो पैवस्त न कराहे तो क्या करे कोई ज़ब्त की हद है मौत तक लेकिन फिर सितम हो तो क्या करे कोई कुछ नहीं जिस में दर्द-ए-दिल का इलाज ऐसी दुनिया का क्या करे कोई आ चला लुत्फ़-ए-ज़िंदगी हम को दर्द अब तो सिवा करे कोई मौत है इम्तिहान-ए-शौक़ 'जिगर' वर्ना क्यूँकर वफ़ा करे कोई