नाज़ुकी हाए उस के होंटों की 'मीर' के शे'र से भी नाज़ुक थी उम्र के रास्ते में आ भटकी एक ख़्वाहिश अभी जो बच्ची थी उस की सब से हसीन कारीगरी एक तुम और तुम्हारा शैदाई रात के दो बजे सितारों की जाने क्यों आँख लगते-लगते रही कल हमें ज़िंदगी से शिकवा था और अब मौत से शिकायत सी मौत के आख़िरी फ़रिश्ते ने फाड़ कर फेंक दी मिरी अर्ज़ी मेरी मजबूरियों से वाबस्ता आज की साँझ फूट कर रोई