नक़्श पानी पे बनाया क्यूँ था जब बनाया तो मिटाया क्यूँ था गए वक़्तों का है अब रोना क्यूँ आए वक़्तों को गँवाया क्यूँ था बैठ जाना था अगर मिस्ल-ए-ग़ुबार सर पे तूफ़ान उठाया क्यूँ था मेरी मंज़िल न कहीं थी तो मुझे दश्त-दर-दश्त फिराया क्यूँ था वो न हमदम था न दम-साज़ कोई हाल-ए-दिल उस को सुनाया क्यूँ था दूर रहना था जब उस को 'मोहसिन' मेरे नज़दीक वो आया क्यूँ था