नक़्शे उसी के दिल में हैं अब तक खिंचे हुए वो दौर-ए-इश्क़ था कि बड़े मा'रके हुए इतना तो था कि वो भी मुसाफ़िर-नवाज़ थे मजनूँ के साथ थे जो बगूले लगे हुए आई है उस से पिछले पहर गुफ़्तुगू की याद वो ख़ल्वत-ए-विसाल वो पर्दे छुटे हुए क्यूँ हम-नफ़स चला है तू उन के सुराग़ में जिस इश्क़-ए-बे-ग़रज़ के निशाँ हैं मिटे हुए ये मय-कदा है इस में कोई क़हत-ए-मय नहीं चलते रहेंगे चंद सुबू दम किए हुए कल शब से कुछ ख़याल मुझे बुत-कदे का है सुनता हूँ इक चराग़ जला रतजगे हुए मेरी वफ़ा है उस की उदासी का एक बाब मुद्दत हुई है जिस से मुझे अब मिले हुए अल्लाह-रे फ़ैज़-ए-बादा-परसतान-ए-पेश-रौ निकले ज़मीं से शीशा-ए-मय कुछ दबे हुए मैं भी तो एक सुब्ह का तारा हूँ तेज़-रौ आप-अपनी रौशनी में अकेले चले हुए