नाक़ूस की सदाओं से और न अज़ान से नफ़रत है उस को मुल्क के अम्न-ओ-अमान से मिल्लत-फ़रोश को किसी मिल्लत से क्या ग़रज़ उस को तो है ग़रज़ फ़क़त अपनी दुकान से छलनी जो कर गया था अयोध्या को राम की निकला था तीर वो भी उसी की कमान से अपना बना के आप ने ये क्या ग़ज़ब किया बेगाना कर दिया मुझे सारे जहान से दिल को उन्हीं से राह भी होती है कुछ 'अतीक़' अल्फ़ाज़ जो निकलते हैं दिल की ज़बान से