नामा तिरा मैं ले कर मुँह देख रह गया था क्या जानिए कि क़ासिद क्या मुझ को कह गया था कूचे से अपने तू ने मुझ को अबस उठाया सब तो चले गए थे इक मैं ही रह गया था पहले जो आँसू देखा लोहू सा लाल तुम ने नासेह वो दिल हमारा ख़ूँ हो के बह गया था कुछ भी न सूझता था उस बिन मुझे तो 'आसिफ़' जिस दिन सती यहाँ से वो रश्क-ए-मह गया था