नंगे पाँव की आहट थी या नर्म हवा का झोंका था पिछले पहर के सन्नाटे में दिल दीवाना चौंका था पाँचों हवास की बज़्म सजा कर उस की याद में बैठे थे हम से पूछो शब-ए-जुदाई कब कब पत्ता खड़का था और भी थे उस की महफ़िल में बातें सब से होती थीं सब की आँख बचा कर उस ने हम को तन्हा देखा था दुनिया तो दुनिया ही ठहरी रंग बदलती रहती है दुख तो ये है ध्यान किसी का घटता बढ़ता साया था कैसा शिकवा कैसी शिकायत दिल में यही सोचो 'जावेद' तुम ही गए थे उस की गली में वो कब तुम तक आया था