नर्ग़े में घटाओं के रहा है न रहेगा ख़ुर्शेद मोहब्बत का छुपा है न छुपेगा हो जाते हैं नाकाम ख़िरद-मंदों के फ़ित्ने सर-ए-अहल-ए-जुनूँ का न झुका है न झुकेगा तुम क्यूँ हो परेशान कि तक़दीर का लिक्खा दुनिया के मिटाने से मिटा है न मिटेगा तरकश से तकब्बुर के जो इतरा के चला है वो तीर निशाने पे लगा है न लगेगा तालीम-ओ-हुनर ही वो ख़ज़ाना है जो अब तक दौलत के लुटेरों से लुटा है न लुटेगा हो जाता है फ़ौरन जो पशेमान ख़ता पर नज़रों से अज़ीज़ों की गिरा है न गिरेगा मंसब जहाँ ज़ालिम के असर में हो वहाँ पर मज़लूम को इंसाफ़ मिला है न मिलेगा हाजत से ज़ियादा की तलब सब को है 'तालिब' क़िस्मत से सिवा फिर भी मिला है न मिलेगा