नर्गिस-ए-मस्त तिरी जाए जो तुल बरसर-ए-गुल तेग़-ए-अबरू से गिरावे सर-ए-गुल बरसर-ए-गुल मौजज़न देख तिरे हुस्न का दरिया-ए-बहार बाँध दे बाद-ए-सबा ख़ाक के पुल बरसर-ए-गुल अपनी नाज़ुक-बदनी से जो हो साक़ी को ख़बर फिर तो हरगिज़ न पिए बैठ के मुल बरसर-ए-गुल खोल कर बाग़ में तेरा जुज़-ए-मजमूआ-ए-हुस्न आज लाई है सबा आफ़त-ए-कुल बरसर-ए-गुल गर 'बक़ा' नाज़ से गोया हो मिरा ग़ुंचा-दहन गर्दन-ए-ग़ुंचा गिरे शर्म से ढुल बरसर-ए-गुल