नमी थी आँख में लेकिन इक ए'तिमाद भी था मुझे तो हौसला जीने का उस के बा'द भी था बुझे हुए दर-ओ-दीवार जानते होंगे कभी यहाँ तिरे जल्वों का इंइक़ाद भी था वो एक इस्म-ए-तवालत जो शब की काट सके वो इस्म आलम-ए-वहशत में मुझ को याद भी था ख़िज़ाँ-नसीब सही आज शाख़-सार-ए-हयात हवा का आना कभी सेहन-ए-दिल में साद भी था सितारा देख के निकली थी मैं सफ़र के लिए मगर सितारे को तक़दीर से इनाद भी था