नशात-ए-दर्द का दरिया उतरने वाला है मैं इस से और वो मुझ से उभरने वाला है मैं उस की नर्म निगाही से हो गया मायूस वो मेरी सादा-दिली से मुकरने वाला है वो मेरे इश्क़ में दीवाना-वार फिरने लगे ये मो'जिज़ा तो फ़क़त फ़र्ज़ करने वाला है मिरे ख़याल की परवाज़ से जो वाक़िफ़ है वो आश्ना ही मिरे पर कतरने वाला है अभी अभी मिरे कुछ दोस्त आने वाले हैं मैं सोचता था हर इक ज़ख़्म भरने वाला है फ़सील-ए-जिस्म पे कुछ नक़्श छोड़ जाएगा जो हादिसा मिरे दिल पर गुज़रने वाला है बस इस ख़याल में बिगड़ा रहा मैं बरसों तक अब एक दिन में कोई क्या सुधरने वाला है वो बन के ज़ीस्त मिरे पास आ गया है 'अमर' ये वक़्त मेरे लिए ऐन मरने वाला है