नशात-ए-कार से महरूम ही सही हम भी हवस से ज़ीस्त की फिर भी नहीं तही हम भी हमें भी ज़ो'म है दानिशवराना मंसब का हैं मुब्तला-ए-फ़रेब-ए-ख़ुद-आगही हम भी हैं मुट्ठियों में सभी रहनुमा ख़ुतूत अगर उठाए फिरते हैं क्यों बार-ए-गुमरही हम भी है ज़ीस्त नाम तग़य्युर का ये सुना तो है वही हो तुम भी वही ग़म भी और वही हम भी अगर है दा'वा-ए-उल्फ़त तो क्यों उठाए फिरें मिसाल-ए-मुंशी-ओ-ताजिर 'अता' बही हम भी