नश्शा-ए-मय के सिवा कितने नशे और भी हैं कुछ बहाने मिरे जीने के लिए और भी हैं ठंडी ठंडी सी मगर ग़म से है भरपूर हवा कई बादल मिरी आँखों से परे और भी हैं इश्क़-ए-रुस्वा तिरे हर दाग़-ए-फ़रोज़ाँ की क़सम मेरे सीने में कई ज़ख़्म हरे और भी हैं ज़िंदगी आज तलक जैसे गुज़ारी है न पूछ ज़िंदगी है तो अभी कितने मज़े और भी हैं हिज्र तो हिज्र था अब देखिए क्या बीतेगी उस की क़ुर्बत में कई दर्द नए और भी हैं रात तो ख़ैर किसी तरह से कट जाएगी रात के बा'द कई कोस कड़े और भी हैं ग़म-ए-दौराँ मिरे बाज़ू-ए-शिकस्ता से न खेल मश्ग़ले मेरी जवानी के लिए और भी हैं वादी-ए-ग़म में मुझे देर तक आवाज़ न दे वादी-ए-ग़म के सिवा मेरे पत्ते और भी हैं