नश्शा-ए-शौक़-ए-रंग में तुझ से जुदाई की गई एक लकीर ख़ून की बीच में खींच दी गई थी जो कभी सर-ए-सुख़न मेरी वो ख़ामुशी गई हाए कुहन-ए-सिनन की बात हाए वो बात ही गई शौक़ की एक उम्र में कैसे बदल सकेगा दिल नब्ज़-ए-जुनून ही तो थी शहर में डूबती गई उस की गली से उठ के मैं आन पड़ा था अपने घर एक गली की बात थी और गली गली गई उस की उम्मीद नाज़ का मुझ से ये मान था कि आप उम्र गुज़ार दीजिए उम्र गुज़ार दी गई दौर-ब-दौर दिल-ब-दिल दर्द-ब-दर्द दम-ब-दम तेरे यहाँ रिआ'यत-ए-हाल नहीं रखी गई 'जौन' जुनूब-ए-ज़र्द के ख़ाक-बसर ये दुख उठा मौज-ए-शुमाल-ए-सब्ज़-जाँ आई थी और चली गई क्या वो गुमाँ नहीं रहा हाँ वो गुमाँ नहीं रहा क्या वो उमीद भी गई हाँ वो उमीद भी गई