नसीम-ए-सुब्ह तो क्या तुंद-ख़ू हवा भी नहीं ये क्या सितम है कि वो मुझ से अब ख़फ़ा भी नहीं फ़सुर्दा चेहरा-ए-गुल है ये कैसा मौसम है कि गुल्सिताँ में कोई शोख़ी-ए-सबा भी नहीं कहाँ मैं लाया गया हूँ न कोई अपना न ग़ैर इलाही लुत्फ़-ए-हयात-ए-गुरेज़-पा भी नहीं अजब है हाल-ए-दिल-ए-ज़ार किस ज़बाँ से कहूँ इलाज-ए-ज़ख़्म-ए-तमन्ना तिरी अदा भी नहीं ख़याल-ए-गर्मी-ए-मौज-ए-नफ़स की शिद्दत से जला हूँ ऐसा कि अब कोई सानेहा भी नहीं इसी से फ़ाश हुआ ज़िंदगी का सोज़-ए-दरूँ मिरी ख़मोश-निगाही कि बे-नवा भी नहीं