ना-तवानी के सबब याँ किस से उट्ठा जाए है आह उठने की कहें क्या दम ही बैठा जाए है नज़अ में हर-चंद हम चाहें हैं दो बातें करें क्या करें मक़्दूर कब है किस से बोला जाए है आमद ओ रफ़्त उन की याँ साअत-ब-साअत है वही कब तबीबों का हमारे सर से बलवा जाए है जा-ए-रिक़्क़त है मिरी हालत तो अब ऐ हम-नशीं पाँव क्या सीधे करूँ मैं दम ही उल्टा जाए है तेग़-ए-अबरू तीर-ए-मिज़्गाँ सब रखे हैं सान पर इन दिनों उस की तरफ़ कब हम से देखा जाए है ज़ख़्म-ए-दिल से मुझ को इक आती है बू-ए-उन्स सी उस के कूचे की तरफ़ शायद ये रस्ता जाए है 'मुसहफ़ी' तू इश्क़ की वादी में आख़िर लुट गया इस बयाबाँ में कोई नादान तन्हा जाए है