नतीजा तजस्सुस का बेहतर भी है मशक़्क़त की तह में मुक़द्दर भी है नदी पार करना ही काफ़ी नहीं अभी रास्ते में समुंदर भी है अगर घर को छोड़ें तो जाएँ कहाँ क़यामत तो खिड़की से बाहर भी है गुलाबों का धोका न खाए कोई अज़ीज़ों की झोली में पत्थर भी है नहीं नींद आँखों में तुझ बिन मिरी ख़ुनुक रात है तन पे चादर भी है बताओ ज़माने में 'अतहर' तुम्हें सुकूँ एक दिन को मयस्सर भी है