नौ-ब-नौ ये जल्वा-ज़ाई ये जमाल-ए-रंग-रंग मोहलत-ए-दिल एक लहज़ा दामन-ए-नज़्ज़ारा तंग है कहाँ वो आग जो रौशन रखे दिल का अलाव बर्क़-ए-जौलाँ महज़ चश्मक शो'ला-ए-गुल महज़ रंग ऐ जुनूँ तीर-ए-मलामत का कोई उनवाँ निकाल कैसा चिपका है बदन पर फ़िर्क़ा-ए-नामूस-ओ-नंग अब ये उस का अज़्म तय कर ले जो राह-ए-आरज़ू हर-क़दम दाम-ए-तहय्युर हर-क़दम दीवार-ए-संग आज देखा सब ने क़ातिल की तही-दस्ती का हाल सैल-ए-ख़ून-ए-आशिक़ाँ में बह गए शमशीर-ओ-संग