नौजवानी में अजब दिल की लगी होती है ग़म के सहने में भी इंसाँ को ख़ुशी होती है प्यार जब प्यार की मंज़िल पे पहुँच जाता है हँसते चेहरों के भी आँखों में नमी होती है पास रहते हैं तो दिल महव-ए-तरब रहता है दूर होते हैं तो महसूस कमी होती है जब भी होता है गुमाँ उन से कहीं मिलने का दिल के अरमानों में इक धूम मची होती है नामा-बर से न कहूँ बात तो फिर फ़ाएदा क्या और कह दूँ तो तिरी पर्दा-दरी होती है जब भी तो मेरे तसव्वुर में मकीं होता है दिल की दुनिया तिरे जल्वों से सजी होती है कज-अदाई हो सितम हो कि हों अल्ताफ़-ओ-करम अपने महबूब की हर चीज़ भली होती है क्या बताऊँ मैं तिरे जिस्म की रंगीनी को जैसे साग़र में मय-ए-नाब ढली होती है उन के आने से सुकूँ आने लगा है 'अफ़ज़ल' आज कुछ दर्द में महसूस कमी होती है