नवाह-ए-जाँ में अजब हादिसा हुआ अब के बदन का सारा असासा बिखर गया अब के ज़वाल आ गया रिश्तों के चाँद-सूरज को वो भी ख़मोश था और मैं भी चुप रहा अब के और उस ने ढूँड लिया कोई साएबान नया तमाम रात मैं ही भीगता रहा अब के ये दूर दूर यज़ीदी की जैसे है तौसीअ' मची है चारों-तरफ़ फिर से कर्बला अब के मुझे तलाश करो तुम उफ़ुक़ के पास कहीं ज़मीं से टूट गया मेरा राब्ता अब के वो कोहर कोहर से चेहरे धुआँ धुआँ सी फ़ज़ा 'क़मर' मैं कैसे कोई ख़्वाब देखता अब के