नावक-ज़नी निगाह की ऐ जान-ए-जाँ है हेच जब तीर ही न पार हुआ तो कमाँ है हेच दैर-ओ-हरम भी हेच हैं और हेच बाग़-ओ-राग़ कोई जगह हो बे तिरे ऐ ला-मकाँ है हेच फ़िरदौस हम को साया-ए-दामान-ए-यार है दुनिया की अस्ल कुछ नहीं बाग़-ए-जिनाँ है हेच कुछ मौत का न ग़म है न कुछ राहत-ए-हयात कूचे में उस के मुझ को बहार-ओ-ख़िज़ाँ है हेच चारागरी करेगा जो वो है मिज़ाज-दाँ दर्द-ए-दरूँ का रू-ब-रू उस के बयाँ है हेच हो जा के कू-ए-यार में ऐ मुर्ग़-ए-जाँ मुक़ीम बाग़-ओ-बहार हेच है और आशियाँ है हेच क़ातिल के पास जाऊँगा मैं ख़ुद ही सर-ब-कफ़ मक़्तल में उस का आना पए इम्तिहाँ है हेच क्या तकिया उस पे कीजिए आलम है बे-सबात हस्ती अबस हयात अबस जिस्म-ओ-जाँ है हेच तौहीद-ए-इश्क़ में मुझे दोनों हैं एक से मर्ग-ओ-हयात हेच है सूद-ओ-ज़ियाँ है हेच जो उस की ख़ूबियों का सना-ख़्वाँ न हो कभी वो हेच और उस के दहन में ज़बाँ है हेच हूँ महव-ए-दीद आँख उठाऊँ मैं किस तरफ़ देखूँ मैं किस को जुज़ तिरे हुस्न-ए-बुताँ है हेच जुज़ ज़िक्र-ए-यार और कहानी नहीं पसंद सब क़िस्से मुझ को हेच हैं और क़िस्सा-ख़्वाँ है हेच नालाँ जो हैं जहाँ में ग़म-ए-इश्क़ से तिरे नाक़ूस उन को हेच है बांग-ए-अज़ाँ है हेच क्या अस्ल तेग़ की तिरे अबरू के सामने तीर-ए-मिज़ा के सामने नोक-ए-सिनाँ है हेच हैं बंद आँखें 'बर्क़' की दिल में है तेरी याद क्या देखे सर उठा के उसे सब जहाँ है हेच