नया ख़याल कभी यूँ दिमाग़ में आया कि शोला चलता हुआ ख़ुद चराग़ में आया बदन पे उस के थी शोख़ी भरी क़बा-ए-बहार वो एक बाग़ के हम-राह बाग़ में आया परेशाँ तंगी-ए-जा से है गरचे दूद बहुत ये कम है दाग़ का सरमाया दाग़ में आया किसी ने डाल दिया शक किसी गए कल पर मैं मुड़ के हाल से उस के सुराग़ में आया मैं सोचता था उसे क्या भुला भी पाऊँगा मगर ये काम बड़े ही फ़राग़ में आया वुफ़ूर-ए-गर्मी-ए-अँदेशा ने ख़राब किया कि बाल तुंदी-ए-मय से अयाग़ में आया अकेला घूमता फिरता रहा मैं दरिया पर वहाँ से शाम ढले एक बाग़ में आया क़रीब-ए-आख़िर-ए-शब ख़त्म हो गई महफ़िल और इस के साथ धुआँ भी चराग़ में आया वो मेरे साथ था जब तक तो ठीक था 'शाहीं' फ़ुतूर बाद में उस के दिमाग़ में आया