नया मौसम दर आया दश्त में बर्ग-ओ-समर जागे ज़मानों से जो महव-ए-ख़्वाब थे क़ल्ब-ओ-नज़र जागे नए हर्फ़ों के फूलों को सजाया वक़्त ने लब पर नए हर्फ़ों के फूलों में नए कैफ़-ओ-असर जागे वो दौर आया सदा ज़ुल्म-ओ-सितम के भी ख़िलाफ़ उट्ठी हमारी और तिरी दुनिया के अर्बाब-ए-हुनर जागे क़यामत कूचा-ओ-बाज़ार में यूँही नहीं आई हम अपने शहर में पहले पस-ए-दीवार-ओ-दर जागे सिवाए तीरगी हद्द-ए-नज़र तक कुछ न था 'बेदी' ये ख़्वाहिश थी कि सीनों में तमन्ना-ए-सहर जागे