नए ग़म्ज़े नए अंदाज़ नज़र आते हैं दिन-ब-दिन हुस्न के एजाज़ नज़र आते हैं वो शहीद-ए-निगह-ए-नाज़ नज़र आते हैं आज-कल और ही अंदाज़ नज़र आते हैं सर झुकाए हुए चलता हूँ तिरे कूचे में क्यूँकि सर-बाज़ ही सर-बाज़ नज़र आते हैं बहुत ऊँचे न उड़े हैं न उड़ेंगे गेसू ये कबूतर तो गिरह-बाज़ नज़र आते हैं झूट ख़ुद बोलना उल्टा मुझे झूटा कहना सच है दम-बाज़ों को दम-बाज़ नज़र आते हैं भेज तो दी है ग़ज़ल देखिए ख़ुश हों कि न हों कुछ खटकते होए अल्फ़ाज़ नज़र आते हैं ग़म्ज़ा-ओ-नाज़-ओ-अदा मेहर-ओ-वफ़ा जौर-ओ-जफ़ा सब के सब ख़ाना-बर-अंदाज़ नज़र आते हैं लुत्फ़ आए जो शब-ए-वस्ल मोअज़्ज़िन सो जाए क्यूँकि वो गोश-बर-आवाज़ नज़र आते हैं उमर गुज़री हमीं सरकार पे मरते मरते जान देते हैं तो जाँ-बाज़ नज़र आते हैं बुलबुलों से नहीं गुलज़ार-ए-ज़माना ख़ाली शुक्र है याँ भी हम-आवाज़ नज़र आते हैं बद-गुमानी भी मोहब्बत का निशाँ है 'परवीं' ग़लती हो तो हो नाराज़ नज़र आते हैं