नए ख़्वाबों से डर लगने लगा है ये रस्ता पुर-ख़तर लगने लगा है ये कैसा दौर आया बे-हिसी का मुझे ज़िंदान घर लगने लगा है बिछड़ जाएगा तू मुझ से किसी दिन न लगता था मगर लगने लगा है ज़रा देखो मिरी सादा तबीअत कि क़ातिल चारागर लगने लगा है सफ़र में हम-सफ़र तुम क्या हुए हो सफ़र अब मुख़्तसर लगने लगा है 'ख़लील' उस से तुम्हें नफ़रत थी लेकिन तुम्हें क्यूँ मो'तबर लगने लगा है