नए मसीहा बनेंगे नए लक़ब होंगे हमारे मुल्क में फिर इंतिख़ाब अब होंगे सुना है फिर से नए ख़्वाब बेचे जाएँगे सुना है फिर से नए जुमले ज़ेर-ए-लब होंगे जो पाँच साल कभी याद तक नहीं आए वही ग़रीब वो लाचार फिर तलब होंगे लो फिर से मंदिर-ओ-मस्जिद का जिन निकल आया लो फिर से रहनुमा अब ख़ूँ के तिश्ना-लब होंगे चमन में बो तो रहे हो तुम इंतिशार के बीज इस इंतिशार का लेकिन शिकार सब होंगे हमारे मुल्क का आईन हम से कहता है अब इंक़िलाब फ़क़त वोट के सबब होंगे 'शहाब' अपने ही जिन से न फ़ैज़याब हुए तुम्हारे और मिरे ग़म-गुसार कब होंगे