मिलन रुत के हसीं सपने ज़रा ता'बीर करते हैं चलो इन चाँद तारों को यूँही तस्ख़ीर करते हैं बना कर चाँद को कश्ती उतर जाएँ किनारे पर भुला डालें सभी सदमात जो दिल-गीर करते हैं सभी बातें सभी क़िस्से सभी दुख भूल कर अपने नए क़िस्से नई ग़ज़लें कोई तहरीर करते हैं जो लफ़्ज़ों और मआ'नी से बहुत है मावरा प्यारे है अबजद से जो आगे वो वफ़ा तफ़्सीर करते हैं बहुत मुँह-ज़ोर हैं देखो निकल जाएँ न हाथों से चलो उड़ते हुए लम्हे यहीं ज़ंजीर करते हैं हसद की आग के शो'ले जो भड़काते हैं ऐ लोगो जलाते हैं ख़ुद अपनी जाँ जो ये तक़्सीर करते हैं शिकारी नफ़्स बैठा है बिछा कर जाल हर लम्हा चला कर तीर तक़वे के उसे नख़चीर करते हैं सुकूत-ए-शब ने दिखलाए नए तारे तमन्ना के उन्हें आँगन में लाने की कोई तदबीर करते हैं रुपहली शाम हो या हों सवेरे अर्ग़वानी से 'शफ़क़' रंगों के सब मंज़र मुझे तस्ख़ीर करते हैं