किस तवक़्क़ो' पे शरीक-ए-ग़म-ए-याराँ होंगे याद हम किस को भला ऐ दिल-ए-नादाँ होंगे रौनक़-ए-बज़्म बहुत अब भी सुख़न-दाँ होंगे उन में क्या हम से भी कुछ सोख़्ता-सामाँ होंगे हम पे जो बीत गए बीत गई बीत गई क्या कहीं आप सुनेंगे तो पशेमाँ होंगे याद इक ग़म है कि फ़रियाद फ़ुसूँ है कि जुनूँ दर्द के रिश्ते हैं मुश्किल से नुमायाँ होंगे थम गए अश्क कि आँखों में चमक लौट आए ये दिए शाम ढलेगी तो फ़रोज़ाँ होंगे यास की रात में हर आस ने दम तोड़ दिया जाने कब सुब्ह के आसार नुमायाँ होंगे तू सलामत कि तिरी बज़्म में ऐ अर्ज़-ए-वतन ज़िंदगी है तो कभी हम भी ग़ज़ल-ख़्वाँ होंगे हाँ कभी तो नज़र आएँगे 'नज़र' वो गलियाँ जिन में ख़ुर्शीद कई अब भी ख़िरामाँ होंगे