नज़र नीची है यार-ए-ख़ुश-नज़र की करामत है ये मेरी चश्म-ए-तर की मुबारक तुझ को ऐ सर्व-ए-ख़िरामाँ जवानी धूप जैसे दोपहर की उसी को लुत्फ़ आया ज़िंदगी का जुनूँ में ज़िंदगी जिस ने बसर की यहाँ पर्वाज़ के आदाब सीखो असीरी तर्बियत है बाल-ओ-पर की सफ़र कटता है अक्सर बे-ख़ुदी में अदाएँ याद हैं इक हम-सफ़र की ख़ुशा ऐ सोज़-ए-ग़म तेरी बदौलत दुआओं पर इनायत है असर की वो ख़ुश हैं 'वज्द' अर्ज़-ए-हाल कर ले यहाँ फ़ुर्सत नहीं अर्ज़-ए-हुनर की