'नज़ीर' कह कि न कह बे-नज़ीर कितना हूँ मिसाल दे कि मैं रौशन-ज़मीर कितना हूँ तू मेरी वज़्अ-ए-फ़क़ीरी पे उंगली न उठा बग़ैर समझे कि दिल का अमीर कितना हूँ परख सकें न मुझे जौहरी निगाहें भी मैं ऊँची ज़ात का हीरा हक़ीर कितना हूँ कमान खींच के बैठा हूँ आज लफ़्ज़ों की वो जान जाएगा दिल का शरीर कितना हूँ छुड़ा सका न ग़म-ए-दहर से किसी को हनूज़ मैं अपनी ज़ात के ग़म में असीर कितना हूँ मिरी हयात का नौहा भी क्या ख़बर देगा हिसार-ए-कर्ब-ओ-बला में असीर कितना हूँ पनाह-गाह-ए-सुकूँ ढूँढता हूँ गाम-ब-गाम अज़ाब-ए-ज़ीस्त में लिपटा 'नज़ीर' कितना हूँ