ने ज़ख़्म-ए-ख़ूँ-चकाँ हूँ न हल्क़-ए-बुरीदा हूँ आशिक़ हूँ मैं किसी का और आफ़त-रसीदा हूँ हस्ती से अपनी मुझ को नहीं मुतलक़ आगही उम्र-ए-गुज़िश्ता या कि ग़ज़ाल-ए-रमीदा हूँ निकले है मेरी वज़्अ से इक शोरिश-ए-जुनूँ दरिया नहीं मैं सैल-ए-गिरेबाँ-दरीदा हूँ मुर्ग़ान-ए-बाग़ में मिरे नाले का शोर है हर-चंद मैं अभी नफ़्स-ए-ना-कशीदा हूँ पहुँचे सज़ा को अपनी जो मुँह पर मिरे चढ़े मैं दस्त-ए-रोज़गार में तेग़-ए-कशीदा हूँ जाता है जल्द क़ाफ़िला-ए-उम्र किस क़दर मोहलत नहीं है इतनी कि टुक आर्मीदा हूँ कौन उठ गया है पास से मेरे जो 'मुसहफ़ी' रोता हूँ ज़ार ज़ार पड़ा आब-दीदा हूँ