नील-गगन पर सुर्ख़ परिंदों की डारों के संग बदली बन कर उड़ती जाए मेरी शोख़ उमंग कोमल कलियों जैसा मेरा पाक पवित्र सरीर पवन के छूने से उड़ जाता है चेहरे का रंग सपनों की डाली पर चमका एक सुनहरा पात चढ़ता सूरज देख के जिस का रूप हुआ है दंग जलते बुझते फूलों से उतरी ख़ुश्बू की राख धो कर आग जो उस ने देखा अँगारों का रंग ता'ने दे कर लोग लगाते हैं क्यूँ आग में आग बस्ती वाले क्यूँ करते हैं बैरागन को तंग