कितने दिन के बा'द मिले थे रात की रानी जुगनू और मैं उस की बातें करते रहे थे रात की रानी जुगनू और मैं पीले पत्तों के साए में इक अंजान उदासी थी ज़र्द फ़ज़ा में बैठे रहे थे रात की रानी जुगनू और मैं आधी रात को चाँद भी थक कर नहर किनारे डूब गया था तारों के संग गाते रहे थे रात की रानी जुगनू और मैं जंगल जंगल फैल रही थी अपने पागल-पन की ख़ुश्बू झूमते नाचते गाते रहे थे रात की रानी जुगनू और मैं