नेकियाँ तो आप की सारी भुला दी जाएँगी ग़लतियाँ राई भी हों पर्वत बना दी जाएँगी रौशनी दरकार होगी जब भी महलों को ज़रा शहर की सब झुग्गियाँ पल में जला दी जाएँगी फिर कोई तस्वीर हाकिम को लगी है आइना उँगलियाँ तय हैं मुसव्विर की कटा दी जाएँगी उन के अरमानों की पर्वा अहल-ए-महफ़िल को कहाँ सुब्ह होते ही सभी शमएँ बुझा दी जाएँगी नाम पत्थर पर शहीदों के लिखे तो जाएँगे हाँ मगर क़ुर्बानियाँ उन की भुला दी जाएँगी कौन मुरझाने से रोकेगा गुलों को ऐ 'दिनेश' बुलबुलें ही बाग़ से जब सब उड़ा दी जाएँगी