निभाओ अब उसे जो वज़्अ भी बना ली है वगरना दहर तो अहल-ए-वफ़ा से ख़ाली है हरीम-ए-दिल में तिरी आरज़ू ने रौशन की वो आग जिस ने शब-ए-ज़िंदगी उजाली है तिरी निगाह-ए-करम है वगरना ऐ ग़म-ए-दोस्त ज़माना क्या तिरे शैदाइयों से ख़ाली है सितम है मेरी तरफ़ प्यार से नज़र न करे वो बुत कि जिस में मिरे फ़न ने जान डाली है बजा कि हुस्न का एहसास है फ़रेब-ए-नज़र मगर वो नक़्श जो दिल में है कब ख़याली है उफ़ुक़ से गर्द छटे तो ख़बर मिले शायद सहर तुलूअ हुई है कि होने वाली है अब अहल-ए-बज़्म ग़म-ए-तीरगी करें तो करें हमारे पास तो जो शम्अ थी जलाली है हवा के दोश पे उड़ती हुई ख़बर तो सुनो हवा की बात बहुत दूर जाने वाली है