नीची नज़रों से न देखो सर-ए-महशर देखो दाद-ख़्वाहों की तरफ़ आँख उठा कर देखो हो के शमशीर-ब-कफ़ सैर घड़ी बहर देखो मरने वालों की वफ़ा तेग़ के जौहर देखो आह कैसी कभी शिकवा भी तुम्हारा न किया ऐसे हम ज़ब्त-ए-मोहब्बत के हैं ख़ूगर देखो वअदा-ए-हश्र है पर्दा भी ज़माने भर से कोई दामन न पकड़ ले सर-ए-महशर देखो उन को दुश्मन से जो उल्फ़त है तो परवा न करो ऐ 'रसा' तुम भी किसी और पे मर कर देखो