निगाह-ए-नाज़ के मारों का हाल क्या होगा न बच सके तो बेचारों का हाल क्या होगा हमीं ने इश्क़ के क़ाबिल बना दिया है तुम्हें हमीं न हों तो नज़ारों का हाल क्या होगा हमारे हुस्न की बिजली चमकने वाली है न जाने आज हज़ारों का हाल क्या होगा बहार-ए-हुस्न सलामत ख़िज़ाँ से पूछ ज़रा कि चार दिन में बहारों का हाल क्या होगा हम अपने चेहरे से पर्दा उठा तो दें लेकिन ग़रीब चाँद-सितारों का हाल क्या होगा