निगह क्या और मिज़ा क्या ऐ सनम इस को भी उस को भी समझते हैं क़ज़ा का तीर हम इस को भी उस को भी पड़े थे दिल के पीछे उस को तो ग़ारत किया तुम ने रहा अब दीन ओ ईमाँ लो सनम इस को भी उस को भी अगर ले मोल इक बोसे पे मेरा देन ओ ईमान तू मैं दे दूँगा तिरे सर की क़सम इस को भी उस को भी हक़ीक़त में तफ़ावुत कुछ नहीं शैख़ ओ बरहमन में सुना है हम ने भरते तेरा दम इस को भी उस को भी गिरा देता है आँखों से मिरी सुम्बुल हो या नागिन तुम्हारी काकुल-ए-पेचाँ का ख़म इस को भी उस को भी कभी तेवरी चढ़ाना और कभी मुँह फेर कर हँसना तिरा आशिक़ समझता है सितम इस को भी उस को भी हमारी आबरू क्या और दिल पर हौसला कैसा डुबो देना अरी ओ चश्म-ए-नम इस को भी उस को भी किया इक़रार बोसा देने का दीं गालियाँ तुम ने फ़क़ीर-ए-इश्क़ हूँ समझा करम इस को भी उस को भी ख़त-ए-महबूब ओ पा-ए-नामा-बर क़िस्मत से हाथ आए लगा आँखों से 'अंजुम' दम-ब-दम इस को भी उस को भी