निगह तेरी का इक ज़ख़्मी न तन्हा दिल हमारा है जगत सारा तिरी इन शोख़ दो अँखियों का मारा है हुए हैं आशिक़ाँ की फ़ौज में हम साहिब-ए-नौबत बजाया आह के डंके सेती दिल का नक़ारा है हमारा दीन-ओ-मज़हब ऐ सजन तेरी इताअत है ख़ुदा का क्यूँ न हो बंदा कि जिन तुझ कूँ सँवारा है बुझा ऐ बेवफ़ा पानी सूँ अपनी मेहरबानी के दहकता दिल मनीं मेरे तिरे ग़म का अँगारा है ख़जिल हो कर मिरी अंझुवाँ की झड़ सें अब्र पानी हो तड़पना देख कर दिल का हमारा बर्क़ हारा है हमें तो रात दिन दिल सीं तुम्हारी याद है प्यारे तुमन नें इस क़दर प्यारे हमन कूँ क्यूँ बिसारा है नज़र करना करम सीं 'आबरू' पे तुम कूँ लाज़िम है किसी लाएक़ नहीं तो क्या हुआ आख़िर तुम्हारा है