निगाह तूर पे है और जमाल सीने में ये कैफ़ियत है तिरा नाम ले के पीने में जुनूँ को होश कहाँ साँवले महीने में खिला हुआ है चमन आरज़ू का सीने में चमन में जब भी तिरे पैरहन की बू आई बहार भीग गई शर्म से पसीने में यूँही नहीं है सुरूर-ए-शब-ए-फ़िराक़ ऐ दोस्त कटी है रात सितारों का नूर पीने में तिरी निगाह में है सिर्फ़ ख़तरा-ए-गिर्दाब ये देख सैकड़ों तूफ़ान में सफ़ीने में जहाँ गिरें मिरे आँसू गुलाब खिल जाएँ भरा हुआ है लहू दिल के आबगीने में यूँ मुस्कुरा के तिरा आँसुओं को पी जाना कोई तो राज़ है ऐ 'रम्ज़' ऐसे जीने में