निगाह-ए-अहल-ए-जहाँ में शिकस्ता-हाल हूँ मैं जवाब जिस का नहीं है वो इक सवाल हूँ मैं बुलंद हूँ तो सर-ए-अर्श-ए-ज़ुल-जलाल हूँ मैं जो पस्त हूँ तो फिर इक फ़र्श-ए-पाएमाल हूँ मैं भुला सकेंगे अबद तक न अहल-ए-दर्द मुझे जहान-ए-इश्क़-ओ-मोहब्बत में ला-ज़वाल हूँ मैं मिरा मक़ाम हर इक दिल में है जुदागाना अगर यक़ीन नहीं हूँ तो एहतिमाल हूँ मैं उरूज-ओ-पस्त मिरा दर्स है जहाँ के लिए बना हूँ बद्र कभी तो कभी हिलाल हूँ मैं चमन में हाए वो इक बर्ग-ए-ज़र्द का कहना बहार-ए-हाल में याद-ए-गुज़िश्ता-साल हूँ मैं मजाल-ए-दीद है 'साइब' न ताब-ए-नुत्क़ मुझे किसी के सामने तस्वीर की मिसाल हूँ मैं