निगाह-ए-शौक़ को जब तेरा नक़्श-ए-पा न मिला मुझे भी हुस्न-ए-हक़ीक़त का आइना न मिला जिसे भी देखो वही अजनबी सा लगता है तुम्हारे शहर में कोई भी आश्ना न मिला हदूद-ए-दैर-ओ-किलीसा में ख़ानक़ाहों में बहुत तलाश किया हम को पारसा न मिला तड़पते रह गए दिन में भी रौशनी के लिए चराग़ बेचने वालों को मश'अला न मिला हमारे दर्स पे ग़ैरों ने पा लिया साहिल हमारे अपने सफ़ीने को नाख़ुदा न मिला सुकूँ मिलेगा उन्हें किस के आस्ताने पर वो अहल-ए-दर्द जिन्हें तेरा आसरा न मिला मता-ए-दिल वो मिरी लूटने चला था मगर ये और बात कि रहज़न को हौसला न मिला मिरी वफ़ाओं पे इल्ज़ाम तो बहुत आए मिरी वफ़ाओं का मुझ को मगर सिला न मिला वफ़ा के तज़्किरे हम ने बहुत सुने 'ख़ालिद' मगर जहाँ में कोई हम को बा-वफ़ा न मिला