जुनूँ ता'लीम कुछ फ़रमा रहा है ख़िरद का साथ छूटा जा रहा है बढ़ी जाती है शम-ए-बज़्म की लौ कोई परवाना शायद आ रहा है फ़ना का पेश-रौ इस को समझिए जो लम्हा ज़िंदगी का जा रहा है इलाही शरम रखना राज़-ए-दिल की किसी का नाम लब पर आ रहा है तिरी रौशन-जबीं का है वो आलम चराग़-ए-माह भी शर्मा रहा है निगह ने शक्ल तक देखी नहीं है पस-ए-पर्दा कोई तड़पा रहा है 'निहाल' आँखें उठा बहर-नज़ारा कोई सू-ए-गुलिस्ताँ आ रहा है